नई-तालीम का सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्य
Keywords:
नई-तालीम : सामान्य परिचय, निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा, शिक्षा का माध्यम : मातृभाषा, शिक्षा : स्वावलंबन का आधार, शिक्षा का आधार : हस्त-कला एवं शिल्प और बाल-केन्द्रित शिक्षा।Abstract
प्रस्तुत शोध-पत्र में गांधी जी द्वारा वर्धा (1937) में प्रस्तावित ‘नई-तालीम’ के सिद्धांतों को प्रस्तुत किया गया है। वास्तव में इस लेख के माध्यम से गांधी जी के शिक्षा दर्शन की दूरदर्शिता और समवाय-पद्धति द्वारा बालक के हाथ, मस्तिष्क एवं हृदय का सर्वोत्तम विकास कैसे संभव बनाया जा सकता है, का उल्लेख किया गया है। वर्तमान समय की सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों का विहंगावलोकन करने के बाद यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली रोजगार, सामाजिक-नैतिक मूल्य, अनुशासन, सद-चरित्र इत्यादि के विकास में सफल नहीं हो पा रही है; जबकी ऐसे नैतिक मूल्यों का विकास होना नितांत आवश्यक है। इसे प्राप्त करने के लिए ‘नई-तालीम’ शिक्षा-पद्धति में वर्णित सिद्धांतों का प्रयोग अनिवार्य जान पड़ता है। अतः प्रस्तुत लेख का मुख्य सरोकार यह पता लगाना है कि सामाजिक-शैक्षिक समानता, आपसी-सद्भाव और सर्वधर्म-समभाव के सृजन में गांधी द्वारा नई-तालीम में वर्णित शैक्षिक सिद्धान्त कितने प्रासंगिक, आवश्यक तथा उपयोगी हैं। ‘हस्त-कौशल एवं शिल्प’ आधारित नई तालीम के सामाजिक-सांस्कृतिक मायने क्या हैं। क्या ‘नई-तालीम’ के सिद्धांत वास्तव में वर्तमान सामाजिक-सांस्कृतिक और शैक्षिक ख़ामियों को दूर करके, समाज रूपी विद्यालय में बालक रूपी भावी नागरिक का निर्माण करने में सक्षम हैं। क्या इसको अपनाकर हम नैतिक-चारित्रिक उन्नति कर सकते हैं। क्या इसके माध्यम से सामाजिक बुराइयों को दूर किया जा सकता है। उक्त सवालों को केंद्र में रखते हुये इस लेख के मुख्य सरोकार ‘नई तालीम के शिक्षण सिद्धांतों का आलोचनात्मक परीक्षण’ करके शोधार्थी द्वारा अपने निर्वचन को प्रस्तुत किया गया है।
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